DAV PUBLIC SCHOOL, CANARY HILL ROAD, HAZARIBAG

CBSE AFFILIATION NO:3430127, SCHOOL CODE:66324

Sahitya Academy award Back to Achievement Page

My happiness knows no bound that your ‘Tales of Hazaribag’ has created another tale by placing you in the distinguished place in the sphere of literature. Thanks to your creative genius that has enabled you to achieve the most coveted Sahitya Academy award. I, on behalf of the whole DAV Hazaribag family congratulate you on your successful endeavour and pray to almighty for much more success in future. It is your sincerity and out of box approach which has made you reach this height. May God give you prosperity and happiness in life. 

 

There is a celebration in the entire school as Mihir Vats, an alumnus of DAV Public School, received the Yuva Sahitya Akademi Award for his travelogue 'Tales of Hazaribagh'.  The School Principal  Shri Ashok Kumar, congratulating Mihir Vats and his parents over phone said that Mihir has brought laurels to the entire Jharkhand including the DAV Institute. It is a matter of great pride that Mihir Vats' book 'Tales of Hazaribagh' has been awarded the Yuva Sahitya Akademi Award. This book has brought the city of Hazaribagh to a national level.  The School Principal Ashok Kumar told that Mihir had become famous as a poet since his student life. Mihir Vats, who earned his education from primary education to higher secondary level at DAV, he  himself admits that his inclination towards English poems started from school life. His enthusiasm grew due to his continuous participation in English poetry reading and English drama competitions and getting rewarded. School's English teachers Sampa Srivastava and Kiran Mishra encouraged him a lot. After being published in the school magazine Kshitij, he continued to be published in various magazines of the country and abroad and was rewarded. He gained a lot of fame with his poetry collection 'Painting that Red Circle Right'. In the composition 'Tales of Hazaribagh', where he has engraved the splendid natural beauty of the district, many bright colors of the district culture of Chotanagpur have emerged in this composition. The principal told that Mihir Vats has a deep attachment to the school from the beginning. Even after passing out from school, Mihir has been attending the English writing workshop organized in the school as a resource person. Mihir Vats is currently pursuing his PhD in Delhi.

 Shri JK Kapoor President, Shri JP Shoor Director, Dr. Urmila Singh ARO Jharkhand Zone D, Shri Manoj Mishra Manager, Shri Dinesh Khandelwal Vice- President and all the members of the Local Management Committee congratulated Mihir Vats on this stupendous success.

हजारीबाग के मिहिर वत्स को साहित्य अकादमी का युवा पुरस्कार मिला

 

24 अगस्त को हजारीबाग के जाने-माने अंग्रेजी के भाषा के युवा साहित्यकार मिहिर वत्स को  साहित्य अकादेमी का युवा पुरस्कार दिए जाने की घोषणा हुई है। इस घोषणा से झारखंड साहित्य प्रेमी  बहुत ही प्रसन्न हैं।  मिहिर वत्स की बचपन ही लेखन के प्रति  रुचि रही है।  हजारीबाग इनकी जन्मभूमि है । हजारीबाग  से इनका बहुत ही गहरा लगाव है।  इस लेखकीय लगाव ने ही उन्हें साहित्य अकादमी का युवा पुरस्कार दिलवाया है।  हजारीबाग पर इनकी एक अनुपम कृति, यात्रा वृतांत, 'टेल्स ऑफ़ हजारीबाग : इंटिमेट एक्सप्लोरेशन ऑफ छोटानागपुर प्लौटो'', जो हजारीबाग के इतिहास, यहां के मौसम, हरियाली, वातावरण, हजार  बागों के शहर के रूप में विख्यात हजारीबाग,  जमीन के नीचे खनिज संपदा की प्रचुरता, रहन सहन, रीति रिवाज, बोलचाल, संस्कृति, कला और  स्वाधीनता आंदोलन में हजारीबाग की भूमिका आदि विविध प्रसंगों पर  लिखी  गई है। इसी अनुपम कृति के लिए उन्हें साहित्य अकादमी का युवा पुरस्कार प्रदान किया जाना है।

 हजारीबाग निश्चित तौर पर राष्ट्रीय मानचित्र पर एक विशेष स्थान रखता है ,लेकिन समय के कालखंड में हजारीबाग अपनी विशिष्टता को खोता चला जा रहा है । हजारीबाग के ऐतिहासिक महत्व को ध्यान में रखकर  युवा साहित्यकार मिहिर वत्स ने 'टेल्स ऑफ़ हजारीबाग' में हजारीबाग की ऐतिहासिक विशिष्टताओं को दर्ज कर, हजारीबाग को पुण: गौरव दिलाने का काम किया है । सर्वविदित है कि ब्रिटिश हुकूमत एक बार भारत की राजधानी हजारीबाग में बनाने पर विमर्श भी किया था।  अंग्रेजों ने यह विमर्श इसलिए किया था कि यह भूमि  भौगोलिक, सुरक्षात्मक और राजनीतिक  दृष्टिकोण  देश की राजधानी बनने की क्षमता रखता है।  यहां का मौसम आज भी लोगों को अपनी और आकर्षित करता रहता है। '  टेल्स ऑफ़ हजारीबाग' में हजारीबाग के सुहावना मौसम के कारण ही अंग्रेज हजारीबाग में रहना  पसंद करते थे । भारत के ही विभिन्न प्रांतों के लेखक, शायर, व्यवसायी हजारीबाग में रुकना पसंद करते थे।  देश के कई जाने-माने लेखकों ने अपनी कृतियों को हजारीबाग में पूर्ण किया ।  ऐसे तमाम विस्मृत हो चुकी बातों को :टेल्स ऑफ़ हजारीबाग'  में जगह दी गई है।  निश्चित तौर पर यह पुस्तक हजारीबाग को समग्रता में जानने और समझने की दृष्टि प्रदान करती है ।

मिहिर वत्स की यह पुस्तक 'टेल्स ऑफ हजारीबाग', 2021 में आई थी । पुस्तक के प्रकाशन के साथ ही इस पुस्तक की चर्चा विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में होने लगी थी।  जब साहित्य अकादेमी की नजर 'टेल्स ऑफ़ हजारीबाग' पर पड़ी तब साहित्य अकादमी के पुरस्कार समिति के सदस्यों ने इसे हाथों हाथ लिया था।  इसके साथ ही कई पुस्तकें इस पुरस्कार समिति के सदस्यों के पास विचाराधीन थे।  उन तमाम पुस्तकों के बीच  'टेल्सा ऑफ हजारीबाग' अपनी एक खास  जगह बना ली।  यह अपने आप में बड़ी बात है।

 मिहिर वत्स एक हंसमुख नौजवान है, जो विविध विश्व साहित्य का अध्ययन भी करता है । मिहिर बचपन से ही घुमक्कड़ प्रकृति का रहा है ।  उनका नए नए स्थानों को देखना, समझना और जानना उसके नौक में रहा है।  अभी मिहिर वत्स  मात्र 31 वर्ष का ही है। टेल्स ऑफ हजारीबाग ने उन्हें एक राष्ट्रीय स्तर का युवा लेखक बना दिया है।  बचपन से ही उसकी किसी वस्तु अथवा स्थान को देखने की ललक और  एक अलग दृष्टि रही है।  जब उन्होंने 'एल शॉप हजारीबाग' लिखा था,  तब उसकी आयु मात्र 29 वर्ष की थी । इस पुस्तक को स्पीकिंग टाइगर दिल्ली ने प्रकाशित किया था।  यह  पुस्तक प्रकाशन के साथ ही चर्चा में आ गई थी।  इनका बचपन हजारीबाग में बीता  । हजारीबाग डीएवी से मिहिर वत्स ने स्कूलिंग पूरी की थी । इन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन एवं पोस्ट ग्रेजुएशन किया।  इन्होंने कुछ समय झारखंड प्रांत के रांची स्थित सिद्धू कानू मुर्मू यूनिवर्सिटी के संतान परगना कॉलेज में बतौर असिस्टेंट प्रोफेसर की नौकरी की थी, लेकिन उन्होंने अपने लेखकीय व यायावरी स्वभाव के कारण नौकरी से त्यागपत्र दे दिया था।  वर्तमान में मिहिर वत्स रामजस कॉलेज के मानविकी एवं समाज विज्ञान विभाग दिल्ली से पीएचडी  कर रहे हैं । मिहिर वत्स  की दोनों पुस्तकों में की खासियत यह रही है कि हजारीबाग जिला के निर्माण के बुनियाद में छिपे इतिहास को खंगालने का काम किया गया है। इनकी दोनों पुस्तकें पूरी तरह शोध परक पुस्तक है । इन दोनों पुस्तकों के लेखन लिए उन्होंने देश के विभिन्न पुस्तकालयों में उपलब्ध हजारीबाग के साहित्य का अध्ययन किया।  हजारीबाग के सीजनल वाटरफॉल, बौद्ध कालीन अवशेष, जंगल नदी के साथ हजारीबाग के इतिहास से जुड़ी बातों का विस्तार से इस पुस्तक में चर्चा है।  यह  पुस्तक छपने के बाद में ही चर्चा में आ गई थी। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण है, हजारीबाग जिला के संदर्भ में विराट अध्ययन।  जिस गहराई के साथ मिहिर वत्स ने हजारीबाग को देखने और जानने का काम किया है, इससे पूर्व किसी अन्य ने नहीं किया।

 मिहिर वत्स ने हजारीबाग पर यात्रा वृतांत लिखते समय हजारीबाग के लगभग तीन हजार वर्षों से अधिक समय के इतिहास को भी रखने का कार्य किया है। उन्होंने हजारीबाग की विलुप्त होती कला पर भी  गंभीर दृष्टि डाली है । हजारीबाग की पुरातन सोहराय कला मृतप्राय हो चुकी है । उस सोहराय कला को मिहिर वत्स ने टेल्स ऑफ़ हजारीबाग में बहुत ही प्रमुखता के साथ स्थान प्रदान किया है। इस पुस्तक को लिखने के क्रम में उन्होंने हजारीबाग के सुदूर गांव की यात्राएं की थी। उन्होंने यहां की प्राकृतिक सौंदर्य ,खेत खलियान, विभिन्न प्रजातियों के पक्षियों के चहकने की आवाज  को भी स्थान प्रदान किया है। उन्होंने यहां की स्थानीय भाषा पर भी  विस्तार से चर्चा की है । हजारीबाग अपने स्थापना कालखंड में किस रूप में अवस्थित था ? यहां की स्थानीय भाषा कैसी थी ?  यहां  किस तरह लोग जंगलों में निवास करते थे ? जंगलों का धीरे-धीरे कर गांव बन जाना, गांव से हजारीबाग शहर बनना आदि इस यात्रा वृत्तान्त के प्रमुख पहलू हैं।  यहां की संस्कृति, पर्व और त्योहार लोग पहले कैसे मनाते थे ?  तकनीकी और विकास की यात्रा आगे बढ़ती गई, धीरे धीरे कर  हजारीबाग के पर्व और त्योहारों के रूप में भी बदलाव आता गया।  इस बात इस यात्रा वृतांत में बहुत ही रोचक वर्णन है।

मिहिर वत्स के पिता का नाम किशोर कुमार झा है । ये बिहार के सहरसा के रहने वाले हैं । इनके पिता संस्कृत के प्रोफेसर है। मिहिर की मां हजारीबाग के इंदिरा गांधी आवासीय विद्यालय की संस्कृत की सेवानिवृत्त  शिक्षिका हैं।  इनका नाम तनुजा मिश्रा है । किशोर कुमार झा एवं तनुजा मिश्रा ने बताया कि 'मिहिर वत्स बचपन से ही पढ़ाकू रहा है । वह  यायावरी स्वभाव का है।  पुस्तक को पढ़ना और पुस्तक के संदर्भ में अपनी स्वतंत्र दृष्टि को रखना, यह इसके स्वभाव में रहा है।  यही कारण है कि इसने हजारीबाग को औरों से अलग नजरिए से देखा। फलत:  उन्होंने 'टेल्स ऑफ हजारीबाग' नामक पुस्तक की रचना कर पाया। अब  यह पुस्तक साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा जा रहा है । यह बेहद खुशी की बात है।'

24 अगस्त को साहित्य अकादमी ने अवार्ड की घोषणा की।  झारखंड से एकमात्र अंग्रेजी के युवा लेखक  मिहिर वत्स को इस पुरस्कार सूची  में शामिल किया गया है । मिहिर वत्स को इस अवार्ड के साथ 50000 रूपए भी पुरस्कार राशि के तौर पर मिलेगी।  मिहिर वत्स  का इससे पूर्व   2014 में काव्य संग्रह प्रकाशित हुई थी।  2013 में मिहिर वत्स  को श्रीनिवास रायपुर पोएट्री प्राइस मिला था। 2015 में देश के सबसे युवा चार्ल् वौलेश फेलो मिला था।  स्कॉटलैंड के स्टर्लिंग  यूनिवर्सिटी में चार्ल्स वौलेश  फेलो मिला था।

मिहिर वत्स को टेल्स ऑफ़ हजारीबाग के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार दिए जाने पर उन्होंने कहां कि  'यह मेरे लिए गौरव के क्षण है । हजारीबाग पर लिखी मेरी यह पुस्तक अपनी जन्मभूमि को समर्पित है।  अभी और भी शोध कार्स करना है।  साहित्य अकादमी ने यह पुरस्कार प्रदान कर मेरे लेखकीय जवाबदेही को और भी दायित्व पूर्ण  बना दिया है।  एक लेखक के बतौर मैं इस कसौटी पर खरा उतरूं, यह मेरी कोशिश होगी।'

हजारीबाग के जाने-माने हिंदी के साहित्यकार ललित विजय संदेश  भी यह भी यायावरी स्वभाव के हैं । इनकी भी यात्रा वृतांत पर एक कृति 'उड़ता चल हारिल' प्रकाशित है।  इन्होंने, मिहिर वत्स को युवा साहित्य अकादमी पुरस्कार दिए जाने पर कहा कि 'टेल्स ऑफिस हजारीबाग' हजारीबाग के  कला, संस्कृति ,मौसम, पर्यावरण, रीति रिवाज, रहन सहन, जंगल से गांव, गांव से शहर के रूप में हजारीबाग रूपांतरण पर एक शोध पुस्तक है । हजारीबाग पर लिखी गई, अब तक की सबसे अनुपम कृति है। यह पुस्तक पठनीय है। इस पुस्तक को साहित्य अकादमी ने पुरस्कृत कर एक श्रेष्यकर कार्य किया है ।  मिहिर वत्स ने हजारीबाग सहित झारखंड का मान बढ़ाया है । मेरी ओर से मिहिर वत्स को बहुत-बहुत बधाई।

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